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मरवाही वन मंडल से वन तस्करों द्वारा खैर प्रजाति के वृक्षों की अवैध कटाई जारी, मुखबिर की सूचना पर 95 चिरान स से लड़े दो ट्रैक्टर ट्रॉली को किया वन कर्मचारियों ने जप्त





खैर प्रजाति की लकड़ी से बनाया जाता है पान में खाने वाला कत्था



मरवाही वन मंडल में दुर्लभ खैर के की अवैध कटाई का मामला सामने आया है। सूचना पर वन विभाग ने वन अपराध सूचना वन अपराध क्रमांक 18729 21 फरवरी .2024 परिसर नाका दर्ज करके वन तस्करों को दो ट्रैक्टर ट्राली सहित 2.509 घन मीटर लगभग 95 नग गीली चिरान जप्त किया है । वन तस्करों द्वारा खैर प्रजाति के संरक्षित पेड़ों की कटाई का मामला सामने आने के बाद वन विभाग मरवाही में हड़कंप मचा हुआ है।


पूरा मामला बीते 20 फरवरी का है जब मुखबिर की सूचना पर वन कर्मचारियों ने मरवाही वन परिक्षेत्र के नाका बीट में खैर प्रजाति के संरक्षित औषधि पौधे को काटने के बाद दो ट्रैक्टर ट्रालियों में लोड कर ले जाते हुए पकड़ा।मुखबिर से सूचना प्राप्त हुआ कि 2 नग ट्रैक्टर में अवैध लकड़ी परिवहन हो रहा है। सूचना पाकर परिसर रक्षक नाका, परिक्षेत्र सहायक दानीकुंंडी और वन प्रबंधन समिति नाका और दानीकुंडी के सदस्यों के साथ कक्ष क्रमांक 2001 सुखाड़ नाला के पास रात्रि 12:30 को 2 ट्रैक्टर में खैर प्रजाति के गिली लकड़ी परिवहन करते पाया गया जिसके परिवहन के सम्बंध में वाहन चालकों के पास कोई वैध परिवहन अनुज्ञा पत्र नहीं था। अवैध राष्ट्रीयकृत वनोपज परिवहन पाए जाने पर दो नग ट्रैक्टर ट्राली सहित 95 नग विभिन्न साईज के गिली खैर प्रजाति के वनोपज(लकड़ी)कुल 2.509 घन मीटर जब्ती कर वन अपराध दर्ज कीया गया।
अभियुक्त 1.वाहन चालक समय सिंह पिता सवई लाल जाती – गोंड़ उम्र 23 वर्ष, निवासी ग्राम सारसताल थाना + तहसील खड़गवाँ जिला- म. चि. भ.
2. वाहन चालक प्रसिद्ध पिता रामशरण जाती – गोंड़ उम्र 22 वर्ष, निवासी ग्राम फुनगा थाना + तहसील खड़गवाँ जिला चिरमिरी भटगांव के खिलाफ कार्यवाही की गई है। खैर प्रजाति के लकड़ी की तस्करी का मामला सामने आने के बाद मरवाही वन मंडल के अधिकारियों एवं कर्मचारियों में हड़कंप मचा हुआ है। वन मंडल के कुछ इलाके वनों की कटाई के लिए पहले से ही बदनाम रहे हैं खासकर बस्ती बगरा क्षेत्र तो अवैध कटाई के कारण एकदम विरल हो चुका है वही मरवाही वन परि क्षेत्र का उत्तर एवं पूर्वी हिस्सा जहां खैर प्रजाति की लकड़ी पाई जाती है वहां भी वन तस्करों की नजर लंबे समय से बनी हुई है। यह वही क्षेत्र है जहां से हाथियों की आवाजाही रहती रही है। उल्लेखनीय है कि खैर प्रजाति के पेड़ दुर्लभ तथा औषधी किस्म के होते हैं तथा इन्हें प्राकृतिक रूप से तैयार होने में काफी समय लगता है उल्लेखनीय है कि लगभग 30-35 वर्ष पहले ही इन वन क्षेत्र में खैर प्रजाति के वृक्षों की कटाई व्यापक पैमाने पर हो चुकी है परंतु अब जो अल्प मात्रा में खैर प्रजाति के वृक्ष है उन्हें भी वन तस्कर निशाना बना रहे हैं। उल्लेखनीय है कि खैर के पौधे से बनने वाला कतथा पान में उपयोग आता है जो आर्थिक दृष्टिकोण से अत्यंत महंगा है यही कारण है कि खैर प्रजाति के इन वृक्षों पर वन तस्करों की बुरी नजर लगी रहती है।

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