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RAIGARH, में आदिवासी जमीनों पर बड़ा खेल: फर्जीवाड़े और कब्जे की पढ़े कहानी..!!

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रायगढ़@टक्कर न्यूज :- छत्तीसगढ़ के रायगढ़ जिले में मेडिकल कॉलेज क्षेत्र के आसपास आदिवासी जमीनों पर फर्जीवाड़े और अवैध कब्जे का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा। स्थानीय जमीन माफियाओं और बिल्डरों पर आदिवासियों की जमीनों को हड़पने के गंभीर आरोप लग रहे हैं, लेकिन प्रशासन की चुप्पी और निष्क्रियता ने इस खेल को और बढ़ावा दिया है। ग्रामीणों ने अब खुलकर अपनी आवाज उठाई है और मांग की है कि इस घोटाले की गहन जांच हो और दोषियों पर सख्त कार्रवाई की जाए।

फर्जी खरीद-बिक्री का जाल: आदिवासियों की जमीनों को बेनामी और फर्जी तरीके से खरीदने के दर्जनों मामले सामने आए हैं। छत्तीसगढ़ भू-राजस्व संहिता के अनुसार, आदिवासी जमीन गैर-आदिवासियों को बेची नहीं जा सकती, जब तक कि कलेक्टर की विशेष अनुमति न हो। लेकिन इस नियम को ताक पर रखकर माफियाओं ने चालाकी से खेल रचा। कुछ हजार रुपये देकर किसी एक आदिवासी के नाम पर करोड़ों की जमीनें खरीदी गईं और उन पर कॉलोनियां, सड़कें और इमारतें खड़ी कर दी गईं।

कैलाश अग्रवाल और राजू सिदार के कारनामे: इस खेल में दो नाम बार-बार सुर्खियों में हैं- कैलाश अग्रवाल और राजू सिदार। ग्राम बड़े अतरमुड़ा माझापारा के निवासियों का आरोप है कि बिल्डर कैलाश ने उनकी कई एकड़ जमीन पर अवैध कब्जा कर कॉलोनी की सड़कें और प्लॉट बना लिए। ग्रामीणों का कहना है, “कैलाश ने हमारे खेतों तक आने-जाने के रास्ते बंद कर दिए और धमकी दी कि या तो उनकी तय कीमत पर जमीन बेच दो, या हेलिकॉप्टर खरीदकर खेतों तक पहुंचो।” वहीं, राजू सिदार के नाम पर जमीन माफियाओं ने तत्कालीन हल्का पटवारी विनय त्रिपाठी के साथ मिलकर नक्शे बदलवाए और पारिवारिक बंटवारे के विवादों का फायदा उठाकर सस्ते दामों में जमीनें हथिया लीं।

2015 में दर्ज हुए थे 261 मामले, फिर भी कार्रवाई शून्य: 2015 में तत्कालीन कलेक्टर मुकेश बंसल के कार्यकाल में भू-राजस्व संहिता की धारा 170-ख के तहत 261 मामले दर्ज किए गए थे, जिनमें से कई मेडिकल कॉलेज क्षेत्र से जुड़े थे। लेकिन ग्रामीणों का कहना है कि अगर तब सख्त कार्रवाई हुई होती, तो आज हालात इतने बेकाबू न होते। आज सैकड़ों ऐसे मामले सामने हैं, जहां आदिवासी जमीनें औने-पौने दामों में खरीदी गईं और उन पर बड़े-बड़े निर्माण हो गए।

ग्रामीणों का गुस्सा, प्रशासन से मांग: स्थानीय निवासियों का कहना है कि बढ़ती जमीन की कीमतों ने माफियाओं की नीयत को और हवा दी। ग्रामीणों ने प्रशासन से मांग की है कि आदिवासी जमीनों से जुड़े फर्जीवाड़े की निष्पक्ष जांच हो और दोषियों पर तत्काल कार्रवाई की जाए। वे कहते हैं, “हमारी जमीनें हमारा हक हैं, इन्हें लूटने वालों को बख्शा नहीं जाना चाहिए।”

क्या जागेगा प्रशासन? रायगढ़ में आदिवासी जमीनों पर चल रहा यह खेल न केवल कानून का उल्लंघन है, बल्कि आदिवासियों के हक और सम्मान पर भी हमला है। सवाल यह है कि क्या प्रशासन अब इस मामले में गंभीरता दिखाएगा, या यह सिलसिला यूं ही चलता रहेगा? ग्रामीणों की उम्मीद अब एक ऐसी जांच पर टिकी है, जो इस घोटाले के असली चेहरों को बेनकाब करे और न्याय सुनिश्चित करे।

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