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क्‍या ये सच है! 26 साल से एक जगह बैठे हैं यह बाबा, जानें क्‍या है इसके पीछे की कहानी?

26 साल से एक जगह बैठे हैं यह बाबा

मंदिर की देखरेख करने वाले और ट्रस्टी अशोक लांबा बताते हैं कि सेवक द्वारा शिवलिंग के पास बाबा की अनुमती से धुनि प्रज्जावलित की गई. उस स्थान पर तब से लेकर आज तक अखंड धूनी भी जल रही है. पहले बाबा जमीन पर बैठ कर ही तप कर रहे थे, लेकिन भक्तों के द्वारा चबुतरा बना गया तथा भक्तों के आग्रह पर बाबा अब उसी चबुतरा में ही बैठ कर तप में लीन रहते है.

छत्‍तीसगढ़ के रायगढ़ जिला मुख्यालय से लगे कोसमनारा गांव का बाबा धाम लोगों के लिए आस्था का केंद्र बना हुआ है. बाबा सत्यनारायण पिछले 26 वर्षों से एक ही जगह पर बैठे हुए हैं. यहां पहुंचने वाले लोग उन्हें भगवान मानते हैं. अब लगातार उनकी ख्याति बढ़ती जा रही है. प्रदेश ही नहीं देशभर से लोग अब उनके साथ जुड़ रहे हैं. बाबा ना तो किसी से कुछ बोलते हैं और ना ही कभी अपनी जगह पर से उठते हैं. यह अपने आप में ऐसा चमत्कार है कि लोग दूर-दूर से बाबा के दर्शन करने पहुंचते हैं. सत्यनारायण बाबा देवरी डूमरपाली नामक गांव के मूल निवासी हैं, जिनका जन्म 12 जुलाई 1984 में हुआ था. इनके पिता का नाम दयानिधी एवं उनके माता का नाम हंसमती है. माता पिता ने बालक का नाम हलधर रखा था उनकी माता ने बताया कि सत्यनारायण बचपन से ही भगवान शिव के भक्त थे. वे गांव में स्थित शिव मंदिर में 7 दिनों तक लगातर तपस्या करते रहे. 16 फरवरी 1998 को हलधर घर से स्कूल के लिए निकले एवं अपने गांव से लगभग 18 किलोमीटर दूर कोसमनारा गांव में तप करने बैठ गए. इसी दिन से बाबा एक पत्थर को शिवलिंग मानकर अपनी जीभ काटकर शिव तपस्या में लीन हो गए. यहीं से उनके बाबा सत्यनारायण बनने की कहानी शुरू हुई. उस दिन से लेकर आज तक बाबा उसी स्थान पर बैठकर तप कर रहे हैं. सत्यनारायण बाबा की मां बताती है कि उनके दो बेटे और एक बेटी है सबसे बड़ा बेटा संन्‍यासी बन गया है छोटा बेटा खेती किसानी का परिवार चलाता है. कोसमनारा में बाबा जिस दिन से बैठे हैं तब से उनकी मां यहां आकर उनकी पूजा करती है और जल्द ही उनके तब के पूरा होने की ईश्वर से कामना करती है. बताती है कि हर मां की तरह वह भी चाहती थी कि उनका बेटा परिवार चलाए लेकिन सत्यनारायण बाबा तपस्वी बन गए. मंदिर की देखरेख करने वाले और ट्रस्टी अशोक लांबा बताते हैं कि सेवक द्वारा शिवलिंग के पास बाबा की अनुमती से धुनि प्रज्जावलित की गई. उस स्थान पर तब से लेकर आज तक अखंड धूनी भी जल रही है. पहले बाबा जमीन पर बैठ कर ही तप कर रहे थे, लेकिन भक्तों के द्वारा चबुतरा बना गया तथा भक्तों के आग्रह पर बाबा अब उसी चबुतरा में ही बैठ कर तप में लीन रहते है. बाबा की तपस्या को देखकर श्रद्घालुओं भीड़ लगातार बढ़ती गई एवं बाबा की 24 घंटे देखरेख होने लगी. वर्तमान में बाबा की ख्याति चारों ओर फैली हुई है. लोगों के चढ़ावे से जो भी रुपए कमाते हैं उससे बाबा धाम के जीर्णोद्धार में उपयोग किया जा रहा भक्तों के लिए प्रसाद उनके खाने की व्यवस्था और रुकने के लिए बेहतर व्यवस्था ट्रस्ट के द्वारा होता है. बाबा सत्यनारायण किसी से भी बात नहीं करते. जरूरत के मुताबिक, ही वो भी इशारों से ही समझाते हैं. हर मौसम में धूप, बारिश, ठंडी में भी बाबा खुले आसमान के नीचे ही बैठे रहते हैं. यहां हरसाल लाखों लोग बाबा के दर्शन के लिए आते हैं. सावन हो या महाशिवरात्रि यहां पर भक्तों का भारी भीड़ साल भर लगा रहता है. छत्तीसगढ़ उड़ीसा और अन्य राज्यों से आए लोग बताते हैं कि इनके चमत्कार के बारे में वह सुने हैं और उसी को देख कर लोग इनके पास दर्शन के लिए आते हैं. कहते हैं किन के दर्शन करने से ही सारे दुख दूर हो जाते हैं और मनचाही कामना पूर्ण होती है. इनको अपनी जगह से उठकर दूसरी जगह जाते नहीं देखा है और ना ही कभी धूप बरसात आंधी तूफान में उठते दिखा है. मौसम हो बाबा एक जगह पर ध्यान मुद्रा में बैठे रहते हैं. बाबा के तपस्या के सफर को दिखाने के लिए मंदिर के दीवाल पर साल 1998 से लेकर 2022 तक की तस्वीर लगी हुई है और लोग इसे पढ़कर समझते हैं कि किस तरह बाबा लगभग 26 साल से एक जगह पर एक ही मुद्रा में ध्यान लगाए हुए तप करते बैठे हुए हैं.

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