
रायगढ़@टक्कर न्यूज :- छत्तीसगढ़ के रायगढ़ में मेडिकल कॉलेज क्षेत्र की आदिवासी जमीनें लैंड माफियाओं के निशाने पर हैं। फर्जीवाड़े और अवैध कब्जे का धंधा इस कदर जोरों पर है कि आदिवासियों की पुश्तैनी जमीनें छल से छीनी जा रही हैं। प्रशासन की चुप्पी ने माफियाओं को खुली छूट दे दी है। अब ग्रामीणों ने ललकार ठोंकते हुए इस घपले की गहरी जांच और दोषियों पर कड़ी कार्रवाई की मांग की है।
कानून को ठेंगा, फर्जीवाड़े का जाल: छत्तीसगढ़ भू-राजस्व संहिता कहती है कि आदिवासी जमीन गैर-आदिवासियों को बेचने के लिए कलेक्टर की इजाजत जरूरी है। मगर, माफियाओं ने इस नियम को जूते की नोक पर रखकर फर्जीवाड़े का नेटवर्क रच डाला। चंद हजार रुपये की लालच देकर आदिवासियों के नाम पर करोड़ों की जमीनें हथियाई गईं, और फिर उन पर कॉलोनियां, सड़कें और आलीशान इमारतें ठोक दी गईं। बड़े अतरमुड़ा माझापारा के लोग चीख रहे हैं कि उनकी जमीनें लुट रही हैं।
कैलाश-सिदार की जोड़ी का जलवा: इस खेल में कैलाश अग्रवाल और राजू सिदार के नाम सुर्खियों में हैं। ग्रामीणों का आरोप है कि बिल्डर कैलाश ने कई एकड़ जमीन पर कब्जा कर सड़कें और प्लॉट बना डाले। एक ग्रामीण ने तंज कसते हुए कहा, “कैलाश ने खेतों तक का रास्ता बंद कर दिया और बोला—या तो हमारी कीमत पर बेचो, या हेलिकॉप्टर से खेत जाओ!” वहीं, राजू सिदार ने तत्कालीन पटवारी विनय त्रिपाठी के साथ मिलकर नक्शे बदले और पारिवारिक झगड़ों का फायदा उठाकर जमीनें सस्ते में हड़प लीं।
2015 के 261 मामले, फिर भी खाली हाथ: 2015 में तत्कालीन कलेक्टर मुकेश बंसल के दौर में धारा 170-ख के तहत 261 मामले दर्ज हुए, जिनमें कई मेडिकल कॉलेज क्षेत्र से जुड़े थे। मगर, ग्रामीण चिल्ला रहे हैं कि अगर तब कार्रवाई हुई होती, तो आज यह नौबत न आती। अब सैकड़ों मामले सामने हैं, जहां आदिवासी जमीनें औने-पौने दामों में खरीदकर उन पर बड़े-बड़े निर्माण खड़े कर दिए गए।
ग्रामीणों का गुस्सा, प्रशासन से फरियाद: आदिवासियों का कहना है कि जमीन की कीमतों ने माफियाओं की लालच को हवा दी है। वे मांग कर रहे हैं कि इस लूट की निष्पक्ष जांच हो और दोषियों को सलाखों के पीछे भेजा जाए। एक ग्रामीण ने गर्जना की, “हमारी जमीन हमारा हक है, इसे लूटने वालों को अब बख्शेंगे नहीं!”
प्रशासन कब लेगा एक्शन?: रायगढ़ में आदिवासी जमीनों पर माफियाओं का यह धंधा कानून की धज्जियां उड़ा रहा है और आदिवासियों के हक को रौंद रहा है। सवाल यही कि क्या प्रशासन अब इस लूट पर लगाम लगाएगा, या माफियाओं का धोखे का धंधा यूं ही फलता-फूलता रहेगा? ग्रामीणों की आस एक ऐसी जांच पर टिकी है, जो इस घोटाले के काले चेहरों को बेनकाब करे और इंसाफ का झंडा बुलंद करे।