रायगढ़

रेत माफियाओं के अंधाधुंध उत्खनन से अब नदियों के अस्तित्व पर मंडरा रहा खतरा!!

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रेत माफिया ने नदियों का किया सीना छली, संरक्षण की आड़ में बेलगाम लूट का जलसा..

लगातार गिरता भू जल स्तर, इस जिले में नदियों का सीना चीरकर किया जा रहा गौण खनिज दोहन..

रायगढ़@टक्कर न्यूज :- एक ओर रायगढ़ जिले में पर्यावरण दिवस का ढोल पीटा गया, पौधे रोपे गए, और हरे-भरे सपनों की बातें उछाली गईं। मगर दूसरी ओर, नदियों का सीना चीरकर रेत माफिया लूट का जलसा मना रहे हैं। यह दोमुंहा रवैया सवाल खड़े करता है—कौन है वो ‘बड़ा साहब’ जो माफियाओं को पनाह दे रहा है? क्यों नहीं रुक रहा नदियों का कत्लेआम? और कब तक प्रशासन आंखें मूंदे यह तमाशा देखता रहेगा?

जमीनी हकीकत चौंकाने वाली है। नदियों से रेत माफिया रात के साये तो कभी दिन में बेखौफ खनन कर रहे हैं। सूत्र के बताए अनुसार रेत माफिया डंपरों और हाइवों की फौज रेत को अवैध तरीके से मंडी, मैदान, तो कही पेट्रोल पंप के पीछे तक ढो रही है। सवाल गूंजता है—क्या बिना किसी रसूखदार के संरक्षण के इतना बड़ा खेल संभव है? आखिर कौन है जो इनके लिए रास्ते साफ कर रहा है?

खनिज विभाग और पुलिस की कार्रवाइयां महज खानापूर्ति बनकर रह गई हैं। कुछ ट्रैक्टर जब्त हुए, जुर्माने लगे, लेकिन माफियाओं के हौसले पर कोई फर्क नहीं। सूत्रों का कहना है कि माफियाओं का जासूसी तंत्र इतना पक्का है कि कार्रवाई की खबर पहले ही पहुंच जाती है। यह सवाल तीखा है—कौन दे रहा है इन माफियाओं को खबर? क्या कोई बड़ा नेता या अफसर इस लूट का हिस्सेदार है?

पर्यावरण कार्यकर्ता चीख-चीखकर कह रहे हैं कि नदियों की यह लूट उनका वजूद मिटा रही है। नदी तल गहरे हो रहे हैं, कटाव बढ़ रहा है, और जल-जीवन संकट में है। रायगढ़, जो ग्रीनपीस की ताजा रिपोर्ट में दुनिया का 48 वां सबसे प्रदूषित शहर है, अब रेत माफियाओं की मनमानी का अड्डा बन चुका है। सवाल लाजमी है—पर्यावरण दिवस का ढोंग क्यों? नदियों की तबाही पर चुप्पी क्यों?

पूर्व जिला कलेक्टर कार्तिकेय गोयल ने प्रदूषण के नाम पर कुछ उद्योगों पर शिकंजा कसा है, लेकिन रेत खनन पर नरमी सवालों को जन्म दे रही है। आखिर कब टूटेगा माफियाओं का यह गठजोड़? कब होगी ऐसी कार्रवाई जो इनके हौसले पस्त कर दे? या फिर नदियां यूं ही लुटती रहेंगी, और प्रशासन तमाशबीन बना रहेगा?

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