कितना बदल गया है तब और अब का चुनाव आयोग
सोशल मीडिया में वायरल मैसेज पढ़ने लायक है,पढ़िए फिर चिंतन कीजिए,,देश ने भले ही आजादी की 76 वीं वर्षगांठ मना ली लो।। पर क्या सही मायनों में आजादी और नागरिकों के संवैधानिक अधिकार का कोई मतलब शेष रह गया है
जब एन केन प्रकारेन सत्ता पर बने रहना ही देश की राजनीतिक पार्टियों का लक्ष्य रह जाए तब देशहित की बात सिर्फ शब्दों में ही अच्छी लगने लगती है।। यथार्थ में देशहित से सत्ता को कोई लेना देना नही होता है।।
सत्ता में बने रहने के लिए राजनीतिक पार्टियां अधिकार प्राप्त केंद्रीय संस्थाओं का ऐसा दुरुपयोग करती रही है,जिन्हे देखकर संवेदनशील नागरिक कांप उठते हैं।
सीबीआई,आई टी,ई डी,एनआईए,पुलिस,रा और चुनाव आयोग से लेकर न्यायपालिका तक सत्ता पक्ष अपना प्रत्यक्ष हस्तक्षेप करने लगाता है।।
हालाकि ऐसा पूर्व से होता रहा है,कहकर सत्ता पक्ष का समर्थन करना या उसे मनमानी करने की छूट देना लोकतंत्र की हत्या करने जैसा कृत्य है।।
जैसा की अभी हो रहा है क्या वैसा कुछ पूर्व में भी हुआ है निस्पक्षता से पढ़िए और समझिएगा।।
1984 में जब अमिताभ बच्चन कांग्रेस के चिन्ह पर चुनाव लड़ रहे थे तब चुनाव आयोग ने दूरदर्शन पर उनकी किसी भी फ़िल्म के प्रसारण पर रोक लगा दी थी।
चुनाव कांग्रेस की सरकार करा रही थी
1991 के चुनाव में जनता दल का चुनाव निशान ‘चक्र’ था।
TV पर Wheel डिटर्जेंट पाउडर का प्रचार आता था, जिसमें चक्र घूमता हुआ आता था, चुनाव आयोग ने उस ऐड पर रोक लगा दी थी।
चुनाव जनता दल की सरकार ही करा रही थी।
2014 के चुनाव में चंडीगढ़ में एक पार्क में जिसमें एक बड़ा सा हाथ का पंजा लगा हुआ था, उस पंजे को चुनाव आयोग ने कपड़े से ढकवा दिया था। उत्तर प्रदेश के पार्कों में हाथी की मूर्तियाँ पर्दे से ढक दी गयी थी। चुनाव कांग्रेस की सरकार करा रही थी।
अब वाले चुनाव भाजपा सरकार करा रही है।
भगवान राम के नाम पर वोट मांगा जा रहा है,लगभग सभी नेताओं ने सीधे तौर पर,धर्म, राम पर पूरा चुनाव ला दिया है।
उनके तस्वीर को बूथ के बाहर लगाया जा रहा है।
नरेन्द्र मोदी जी रोज मंच से ध्रुवीकरण की राजनीत कर रहें हैं। हेट स्पीच का रिकार्ड तोड रहे है,धर्म विशेष को सीधे चुनावी मंच से अपशब्द कह रहे हैं।।
बावजूद इसके दिन रात मीडिया में आपका महिमामंडन हो रहा है। जबकि आचार संहिता इस बात की अनुमति कतई नहीं देती है।।क्युकी संविधान ने भारत देश को पंथ और धर्म निरपेक्ष देश का दर्जा दिया है।।
हेमा मालिनी के ऐड टीवी पर आज भी धड़ल्ले से चल रहे है.
चुनाव आयोग मूक दर्शक बना देख रहा है।।
चुनावी प्रक्रिया बिना विधिक तरीके से पूर्ण कराए सता पक्ष का प्रतिनिधि चुना जा रहा है।
चुनाव के बीच विपक्ष के निर्वाचित और जनाधार वाले नेता झूठे सच्चे आरोपों ने जेल में डाले जा रहे हैं।।
सता पक्ष ने चुनाव के दरमियान (जब आयोग को पूरी क्षमता से काम करना चाहिए) ठीक उसकी नाक के नीचे से विपक्ष के प्रत्याशियों को या तो हाइजेक कर रही है या फिर उनका बल पूर्वक अधिग्रहण कर रही है।।
सच कहूं तो संवैधानिक संस्थाओ का जो हाल इस सरकार में हुआ है,
वो मुझे नही लगता पहले कभी हुआ होगा या आगे भी कभी होगा।।
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