समान नागरिक संहिता एक बार फिर बना चर्चा का बिषय..!!
Uniform Civil Code: यूनिफॉर्म सिविल कोड का मुद्दा देश में एक बार फिर से चर्चा का केद्र बना हुआ है। हर तरफ के लोग इसके बारे में बातें करने लगे हैं। इस मुद्दे पर कोई पक्ष में है तो कोई विपक्ष में खड़ा है।। सबकी अपनी राय है। और सभी अपनी जगह सही भी है। चुकी भारत बड़ी भिन्नताओं वाला धर्मनिरपेक्ष देश है। इसलिए यूसीसी का परिष्कृत स्वरूप ही लागू किया जाना देश हित में होगा।। देश में जब से यूसीसी पर बात होने लगी है तब से सबसे ज्यादा विचलित वर्ग आदिवासी और दलित है। उन्हे डर है कि यूसीसी लागू होने के बाद उन्हें भारतीय संविधान से मिलने वाला विशेषाधिकार उनसे छीन लिया जाएगा। उनका यह डर जायज भी है। विशेषाधिकार मिलने के बावजूद जिस देश का बहुतायत सवर्ण वर्ग दलितों और आदिवासियों के अमानवीय शोषण को अपना अधिकार मानता है,वहां यूसीसी लागू होने के बाद की स्थिति काफी गंभीर हो सकती है।
ये भी तय है कि देश को लंबे समय तक दोहरी कानून व्यवस्था के सहारे नही चलाया जा सकता हैं। एक न एक दिन यूसीसी जैसी व्यवस्था को लागू करना ही पड़ेगा।। ऐसे में मेरी निजी सोच यह है,कि *भविष्य में कभी अगर यूसीसी कानून लागू भी किया जाए तो दलित और आदिवासी वर्ग के लोगों के संवैधानिक विशेषाधिकार को पूर्ववत उचित स्थान दिया जाए।* तब तक जब तक लोगों के दिमाग से जातिवादी फितूर पूरी तरह से उतर नही जाए।
इसके अलावा यूसीसी कानून देश में लागू करने से पहले देश की पुलिसिंग और न्याय व्यवस्था भ्रष्टाचार से पूरी तरह मुक्त करना होगा ।।
ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल के 2020 करप्शन सर्व के अनुसार में वर्तमान में देश के सरकारी विभागों में पुलिस तंत्र सबसे भ्रष्ट और निरंकुश है।। कमोबेश यही न्याय प्रणाली की स्थिति भी है। सुप्रीम कोर्ट के कई पूर्व चीफ जस्टिस भी यह कह चुके है *”यदि आपकी जेब में पैसा नही है तो न्याय की तरफ मुंह ताकना हमारे देश में गुनाह है”*.
इन परिस्थितियों में देश की कानून व्यवस्था को बदलना बेहद घातक कदम साबित हो जाएगा।।
वही आज भारत में यूसीसी कानून को लागू करने में भले ही प्राथमिक स्तर पर दिक्कतें आ रही हों। लेकिन इसी भारत का एक राज्य है गोवा,,जहां यूसीसी लागू है। भारतीय संविधान में गोवा को विशेष राज्य का भी दर्जा दिया गया है. गोवा में सभी धर्मों के लोग एक ही कानून को फॉलो करते हैं। गोवा में यूसीसी के चलते कोई ट्रिपल तलाक नहीं दे सकता, बिना रजिस्ट्रेशन के विवाह कानूनी तौर पर मान्य नहीं, प्रॉपर्टी पर पति-पत्नी का समान अधिकार है, तलाक सिर्फ कोर्ट के जरिए ही संभव है,और माता पिता संपत्ति का मालिक अपने बच्चों को भी बनाना होता है।
वैसे यूनिवर्स सिविल कोड लागू होने के फायदे और नुकसान दोनो लगभग एक बराबर है। इसलिए *देश में यूसीसी लागू करने के पहले इस कानून के प्रति लोगों की एक राय बनाया जाना जरूरी है। जो कि एक क्रमिक प्रक्रिया है। इसमें सालों लग सकते है। इसके पहले पुलिस और न्याय प्रणाली की जवाबदेही भी तय किया जाना उचित होगा।* अन्यथा बिना जिम्मेदार न्यायिक व्यवस्था वाले देश पाकिस्तान में यूसीसी कानून(शरिया) पूरी तरह से लागू है, परंतु इस कानून की वजह से पाकिस्तान की राजनीतिक और आर्थिक दुर्वव्यवस्था आज की स्थिति में किसी से छुपी नहीं है। हालाकि पाकिस्तान के अलावा इन देशों में अमेरिका,आयरलैंड, बांग्लादेश, मलेशिया,तुर्किये,इंडोनेशिया,सूडान, मिस्र जैसे देशों में यूसीसी कानून लागू हैं। इन देशों के यूसीसी कानून में भी काफी भिन्नता दिखती है,,इस्लामिक देशों में शरिया कानून और कई यूरोपीय देशों में धर्मनिरपेक्ष यूसीसी कानून को फॉलो किया जाता है। इस लिहाज से यूरोपीय देश यूसीसी कानून के बेहतर विकल्प के साथ आर्थिक और राजनीतिक प्रगति पर है।।
पड़ोसी देशों(पाकिस्तान/ बगलदेश) की स्थिति को ध्यान में रखकर नीति आयोग ने सरकार को सुझाव दिया है कि *समान नागरिक संहिता को लागू करने के बजाय देश की सभी निजी कानूनी प्रक्रियाओं को संहिताबद्ध करने की जरूरत है।*
समान नागरिक संहिता लागू करने से पहले सभी धर्म प्रमुखों को ईमानदारी से इस कानून के फायदे और चुनौतियों को समझना चाहिए।। हमें यह भी समझना होगा कि भारत जैसे देश में संस्कृति की बहुलता होने से न केवल निजी कानूनों में बल्कि रहन-सहन से लेकर खान-पान तक में विविधता देखी जाती है,और यही विविधता इस देश की खूबसूरती भी है। ऐसे में जरूरी है कि देश को समान कानून में पिरोने की कोशिश में अधिकतम सर्वसम्मति की राह अपना कर की जाए। यहां ऐसी कोशिशों से बचने की जरूरत है जो समाज को ध्रुवीकरण की राह पर ले जाएँ और हमारे देश की सामाजिक सौहार्द्र के लिए नई चुनौतियां पैदा कर दें।
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