चुनावी चंदे(इलेक्टोरल बांड) में फंसे अपने राष्ट्रवादी नेताओं के पक्ष में कुतर्कशील आधुनिक भक्तों का तर्क वाकई हास्यास्पद है
वो कहते है चुनावी चंदा जनता को मुफ्त अनाज,मुफ्त सिलेंडर ,मुफ्त तीर्थ यात्रा ,हर माह खाते में पैसा चाहिए,चुनाव की रैलियों में 500 रुपया और खाना/ बिरियानी भी चाहिए चुनाव में शराब मुर्गा और गिफ्ट चाहिए,किसानों को कर्ज मुक्ति,फसल का अधिकतम मूल्य चाहिए,,इसके साथ ही जनता प्रभावित उन नेताओं से होती है जो हेलीकाप्टर में आए और अपने साथ बड़ी भीड़ लाए,मिडिया,अखबारों में दिखे,जब पूरा सिस्टम ही गलत है तो जनता ये सोचे कि वो तामझाम और मुफ्तखोरी से वोट करती है तो राजनीतिक दल पैसा कहा से लायेंगे
उनके अनुसार भारत में भ्रष्टाचार मुद्दा ही नही है, क्योंकि भारत का आम नागरिक कभी किसी भ्रष्ट नेता अफसर से उसके कमरे अकूत संपत्ति को लेकर सवाल नही करता।।
जबकि मेरा कहना है,जनता के लिए भ्रष्टाचार और महंगाई तब भी बड़ा मुद्दा थी,जब आप आज के राष्ट्रवादियों ने 2013 में जनता की समस्याओं का बाज़ारवाद(अन्ना और रामदेव आंदोलन)कर सत्ता हासिल की थी। आज भी वही मुद्दे आपके सामने खड़े है, क्यूंकि जनता खुद को ठगा हुआ महसूस कर रही है,इन 10 सालों उसे न तो भ्रष्टाचार से मुक्ति मिली न ही कमर तोड़ महंगाई से राहत मिली।। ऊपर से उसके हक का रोजगार भी उससे दूर गया।। दस सालों में देश का पैसा मुठ्ठी भर लोगो में पास सेंट्रलाइज हो चुका है।।
रही बात जिन चीजों को लेकर आप अपने पार्टी के महाभ्रष्ट नेताओं का बचाव कर रहे हैं।। उन चीजों को भारत की गैरत मंद जनता ने कभी किसी राजनीति दल खासकर आपकी पार्टी से चलकर नही मांगा।।
जो गैर जरूरी चीजें थीं,उसे आप की पार्टी और दूसरे राजनीति दल के नेताओं ने जबरन जनता पर थोपा।। ताकि उन्हें मुफ्त खोरी में उलझाकर,उन चीजों से दूर किया जाए जिससे जनता का वास्तविक भला होना था।
मसलन अच्छी सरकारी शिक्षा,अच्छी सरकारी स्वास्थ्य सेवा,अच्छा और सस्ता सुलभ परिवहन तंत्र,अच्छी सड़कें पानी,बिजली और निष्पक्ष_जिम्मेदार न्याय व्यवस्था से जब तक जनता दूर रहेगी तब तक आप जैसी सोच वाले राजनीतिक लोगों का भविष्य उज्ज्वल रहेगा।।
फिर तो डंडे के जोर पर वसुला गया चुनावी चंदा(इलेक्टोरल बांड),और उसके बदले में उन्हें दिए जाने वाला उनके फ़ायदे का धंधा बीते कल की बात हो जाएगी।। जैसे स्विस बैंक में जमा एक लाख करोड की वापसी की गारंटी, और नोट बंदी से आतंकवाद,नक्सल वाद,अलगाववाद को खत्म कर दिए जाने की गारंटी,उसके बाद,उरी,पुलवामा,सुकमा,बीबीजापुर,नगालैंड और मणिपुर ये सारी घटनाएं लोकसभा चुनाव के बाद बीते कल की बात हो जाएगी।।
क्योंकि आप चाहे जो भी तर्क दें,लेकिन हक़ीक़त यही है कि आज का आपका राष्ट्रवाद भी सिर्फ चुनावी धंधा है और इसके ज्यादा कुछ नही है।
आज भी भारत देश की जनता उतनी ही गैरतमंद है जितनी 1947 में थी। इसलिए यह मान लीजिए कि मुफ्तखोर जनता नही अपने फ़ायदे के लिए उसका इस्तेमाल करने वाले राजनीतिक दल के नेता ही असल “हरामखोर” हैं।।
ऐसा नहीं होता तो देश की जनता की आर्थिक स्थिति पहले से कहीं अधिक सुदृढ़ होती,,लेकिन हुई किसकी ये आप खुद देख लीजिए।।
The post चुनावी चंदे(इलेक्टोरल बांड) में फंसे अपने राष्ट्रवादी नेताओं के पक्ष में कुतर्कशील आधुनिक भक्तों का तर्क वाकई हास्यास्पद है appeared first on khabarsar.