
रायगढ़@टक्कर न्यूज :- केराखोल गांव में 16 जुलाई की रात जुए के अड्डे पर पुलिस की तथाकथित छापेमारी ने कानून के ‘रखवालों’ की पोल खोलकर रख दी। एक आदतन जुआरी नवल दास महंत को पकड़, 6 ‘खुडखुडिया’ गोटियां, एक चटाई, बांस की टोकरी और 2500 रुपये की जब्ती दिखाकर पुलिस ने वाहवाही लूटने की कोशिश की। मगर सवाल वही—सैकड़ों जुआरियों का हुजूम आखिर कहां गायब हो गया? यह छापा था या ‘सेटिंग’ का सर्कस?
ग्रामीणों का सीधा आरोप है—यह सब ‘पक्का फिक्स्ड’ था! रेड की खबर मेला आयोजकों तक पहले ही पहुंच गई थी, ताकि बड़े मगरमच्छ आराम से खिसक लें। नवल दास को ‘बलि का बकरा’ बनाकर पुलिस ने खानापूर्ति की और थाने पहुंचते ही उसे मुचलके पर छोड़ दिया। चौंकाने वाली बात? सूत्र बता रहे हैं कि केराखोल के एक पूर्व बीडीसी का नाम भी इस खेल में उछला है। तो क्या रसूखदारों का रौब पुलिस को झुका रहा है?
जब पूरा गांव जुए के फड़ के सरगनाओं और उनके ‘संरक्षकों’ को नाम ले-लेकर गिनाता है, तो पुलिस का यह ‘आंखों में धूल झोंकने’ वाला ड्रामा किसके लिए? जनता का गुस्सा अब उबाल पर है। बार-बार रसूखदारों के आगे नतमस्तक होने का यह तमाशा अब बर्दाश्त से बाहर है।
अब वक्त है बिना डर, बिना लिहाज के जांच का, जो इस जुए के काले कारोबार के असली मास्टरमाइंड को बेपर्दा करे। पुलिस को चाहिए कि सबूतों और गवाहों के दम पर बड़े खिलाड़ियों की गर्दन पकड़े, वरना कानून का इकबाल सिर्फ कागजों की स्याही बनकर रह जाएगा। जनता की निगाहें टिकी हैं—क्या पुलिस इस बार सचमुच कानून की चौकीदारी करेगी, या फिर ‘चोर-सिपाही’ का खेल चलता रहेगा?
गुस्साए ग्रामीण निष्पक्ष जांच की मांग को लेकर जिला प्रशासन के सामने प्रदर्शन की तैयारी में जुट गए हैं।