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अबूझमाड़ जहां नक्सलियों की चलती रही है फैक्टरी और बड़े नक्सल नेताओं का रहता रहा है बारहों महीने जमावड़ा।

यहां के टेकामेटा मेँ- 10 पहाड़ियों का कंट्रोल रुम था ।

अबूझमाड़ के जिस टेकमेटा इलाके में पुलिस के जवानों की नक्सलियों से मुठभेड़ हुई, वहां 10 पहाड़ियों का कंट्रोल रुम था। इसलिए नक्सली यहां कांक्रीट का मजबूत बंकर बनाने की तैयारी में थे। अब पुलिस इस पूरे इलाके को खाली करवाने की कवायद में जुट गई है।

इस पूरे इलाके की विषमता का अंदाजा इस बात से लगता है कि जवानों ने मारे गए नक्सलियों के शवों को 7 किलोमीटर तक कंधे पर ढोकर पहुंचाया। विषम् भौगोलिक परिस्थितियां माओवादियों को रास आती थीं और इसलिए  वे इस क्षेत्र को सुरक्षित ठिकाने के रुप में तैयार करने जुटे हुए थे। कांक्रीट का बंकर तैयार करने के लिए ही नक्सलियों ने जेसीबी भी ला रखी थी।

समझना होगा कि 5 हजार वर्ग किमी से अधिक के क्षेत्रफल वाला अबूझमाड़ आखिर नक्सलियों का सेफ जोन और हथियार बनाने के अलावा ट्रेनिंग सेंटर  बनने की लिबर्टी  की स्थिति कैसे बनी
इस इलाके में घोटुल का आयोजन होता था  जिसमें आदिवासियों की नई जनरेशन यानि युवा कुंवारों की सामाजिक पाठशाला घोटुल के जरिये लगती थी  जहां युवा वर्ग रात में नाच गानों के साथ साथ मिलकर रात गुजारते थे। यहाँ बुजुर्गों का आना सर्वथा वर्जित होता था ।  यहां न केवल वे वैवाहिक जीवन की बारीकियों को  धैर्य व संयम से समझते हैं बल्कि अश्लीलता का नामोनिशान नहीं होता ।

सन 1980 के दौरान भारत सरकार की अनुमति से बीबीसी की टीम यहाज़न घोटुल के फिल्मांकन के लिए आई , जिसमें महिलाएं भी थी । ये टीम यहां कुछ महीने रही और यहां के अबूझ माड़िया युवाओं से पूरी तरह गुल मिल गई ।  इस टीम ने दो तरह की फाइल बनाई । एक भारत सरकार को दिखाने और दूसरी बीबीसी के लिए जिसमें अश्लीलता परोसी गई और दुंनियाँ को बताया कि घोटुल में रास लीला होती है ।
इसकी जानकारी लगते ही यहां की मीडिया ने इसके विरोध में जबरदस्त अभियान छेड़ दिया ।

सरकार ने इससे बचने अबूझमाड़ के इलाके में बाहरी व्यक्ति का प्रवेश प्रतिबन्धित कर दिया ।जिसके दायरे में क्षेत्र के निवासी भी अंदर नहीं जा सकते थे । केवल सरकाए मशीनरी ही जाती रही । इसकी आड़ में अरबों रुपयों का खेल विकास के नाम खेला गया जो कभी बाहर नहीं आया ।
इसी प्रतिबन्ध का फायदा नक्सलियों ने उठाया और अपना गढ़ बना लिया जिसकी जानकारी सरकार तक भी नहीं पहुंचती रही । धीरे धीरे अबूझमाड़ अबूझ ही रहा।

इस गलती का एहसास होंने पर प्रतिन्ध हटा तो लिया गया पर देर काफी हो चुकी थी और नक्सली फलते फूलते रहे । वर्षो तक यहां का राजस्व सर्वे तक नहीं हुआ । विषम भौगोलिक परिस्थियां भी नक्सलियों के हक में रहीं देर से ही सही अब पुलिस यह प्रयास कर रही है कि नक्सली अबूझमाड़ को सुरक्षित पनाहगाह के रुप में इस्तेमाल न कर सकें।

नक्सलियों की सेंट्रल और जोनल कमेटी के बड़े पदाधिकारी यहीं शरण लेते रहे हैं। माओवादी नेताओं में भय पैदा करने के साथ ही उन्हें खदेड़ने की कोशिश फोर्स कर रही है। ऐसे ही प्रयासों का नतीजा है कि इस साल जनवरी से अब तक 91 नक्सली मारे जा चुके हैं। सिर्फ अप्रैल में ही 50 नक्सलियों को फोर्स के जवानों ने जहन्नुम पहुंचा दिया है। इनमें कई बड़े नाम भी शामिल हैं, जिससे माओवादी संगठन को बड़ा झटका लगा है। नक्सलियों से मुठभेड़ में जवानों के अदम्य साहस से। मिली सफलता की पुष्टि बस्तर के आईजी सुंदरराज भी करते हैं ।

हाल ही में हुई टेकमेटा की पहाड़ी में मुठभेड़ के बाद जो सामग्री मिली है, वह बताती है कि यह नक्सलियों का स्थायी ठिकाना था,  जहां पहुंचना फोर्स के लिए आसान कतई नहीं था। विपरीत परिस्थितियों के बावजूद जिस तरह से आईजी और पुलिस के अधिकारियों ने विशेष रणनीति के तहत जवानों को ट्रेंड किया और गोपनीयता बनाए रखते हुए न केवल टेकमेटा तक जवानों को रात में ही यहां पहुंचाया और अलसुबह नक्सलियों पर हमला बोल दिया  ।

उनकी  थ्री लेयर सुरक्षा घेरे को भी जवानों ने भेद दिया । लिहाजा मुठभेड़ में ढेर हुए 3 बड़े नाम सफलता की कहानी कहने के लिए पर्याप्त हैं। 196 मामलों में संलिप्त जोगन्ना के अलावा 43 बड़े मामलों का गुनहगार मल्लेश और 8 मामलों का दोषी विनय इस मुठभेड़ में मारा जा चुका है।
कहा जा सकता है कि अब बूझा जा रहा है अबूझमाड़ ।

नक्सली मामलों के जानकार सीनियर जर्नलिस्ट मनीष गुप्ता भी पुलिस की रणनीति और मुठभेड़ में जवानों के हौसलों की हकीकतों से इत्तफाक रखते हुए कहते हैं कि

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